Posts

जीवन सरल है ।

आज बड़े अरसे बाद याद-ऐ-शहर से गुजरा हुँ , तो क्या देखता हुँ? सड़के अब टूट चुकी हैं,जो उसके घर कि तरफ जाती थी। आशियाना अब खंडहर हो चुका है,जो उसके संग कभी बनाया था। गलियाँ अब वीरान पड़ी है,जो कभी उसकी मधुर बातो से गूंजती थी। वो किस्सा पुराना हो चुका है,जो तुमने हदो से पार उतरकर मुझे अपनाया था। आज बड़े अरसे बाद याद-ऐ-शहर से गुजरा हुँ, तो क्या देखता हुँ? वीरान पड़ा ये शहर कभी आबाद चमन था। उस ठौर वहा पानी का झरना था। किनारो पर वृक्षों से आलिंगन करती लताएं थी। पगडंडी जो तेरे घर को जाती,शेफाली और मालती से सजी थी। और उस पौखर में हंसो का जोड़ा था। उस और कोई कोई कन्हैया प्रेम मुरली बजाया करता था। इस छोर कोई मीरा बन के जोगन नृत्य किया करती थी। तितलियों का वह झुंड फूलो का रसपान किया करती थी। उस रात बादलो की ओट में छिपकर,चाँद भी शरमाया था। जब लग कर गले तुमने,रूह को मेरी जगाया था। याद है वो बारिश, जो रूठी धरती को मनाती थी। वो बहती हवां,जो मेरे चुम्बन को तेरे होठों तक पहुचाती थी। आज बड़े अरसे बाद याद-ऐ-शहर से गुजरा हुँ, तो क्या देखता हुँ? जुनून से मेरे बाहर सब कुछ आबाद हो च

💐तू मुझसे दूर कहाँ है 💐

सांसो से तेरी महक आती है, धड़कन तेरे नाम को जपती है, निगाहे तेरी यादों को ही देखती है, शब गुजर जाती पर पलके झुकती नही है। तु मुझसे दुर कहाँ है,तु मुझसे दुर कहाँ है ।। बारिश की हर बुंद में तु बसा है, सर्दी की धुप में तु समाया है, पतझड़ के सुखे पत्तो में तु बसा है, रूह की भांति मुझमे तु समाया है। तु मुझसे दुर कहाँ है,तु मुझसे दुर कहाँ है।। रात के गहरे सन्नाटे में है तु, दिन के शोरगुल में है तु, गिरती सुबह ओस की बुंदो में  है तु, ढलती शाम के नजारो में है तु, तु मुझसे दुर कहाँ है,तू मुझसे दुर कहाँ है।। सिगरेट के कश में खींचता हुँ तुझे, जाम के प्यालो से पीता हुँ तुझे , नगमों की भाँति सुनता हुँ तुझे, पढ़ता था कभी,अब लिखता हुँ तुझे, तु मुझसे दुर कहाँ है, तु मुझसे दुर कहाँ है।। बात बिगड़ी नही हालात बिगड़े है, अब प्यासे नही दरियाँ में डूबे है, भटके है तेरी गलियों में तब जाके ठहरे है, तेरे ना होने की शिकायत नही हर जगह तेरे ही पहरे है, तु मुझसे दुर कहाँ है,तु मुझसे दुर कहाँ है।। दिल को जरूरत नही तेरी एहसास है तु इसका, जाने कल जिस्म होगा किसका पर तु मेरा ही रहेगा, जमा